रविवार, 3 अक्तूबर 2010

हँसिया


हँसिया या दिखने वाला चाँद

इधर मुटिया कर गोल हो गया है

हँसिया से खेलता और फिर जूझता

मेरा गोल मटोल बेटा

आँत के पीठ में सट जाने से

हँसिया या दीखने लगा है

कभी मैंने अपनी आंतों में

दाँत जामने की कल्पना की थी

शायद मेरा बेटा भी

तीसरे पहर भूख की तिलमिलाहट में

ऊपर आकाश की ओर देखकर

ऐसा ही सोचता है।

पीढ़ियों से आता हुआ यह सोच

हमें सिर्फ हँसिया ही बनता रहेगा

या हमारी कुलबुलाती आँतों में

हँसिया जैसे दाँत भी पैदा करेगा ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें