बड़े तड़के हाथ में बंसी लिए
कागज की पुड़िया में चारा लपेटे
वह नदी किनारे पहुँच जाता है
उसकी दिनचर्या का अंग है यह
एकाग्र भाव से बंसी में चारा फँसाना,
उसे नदी की धारा में फेंकना
फिर धागे में बँधी कंड़े के छोटे टुकड़े के डूबने की प्रतीक्षा,
फँस गई है मछली – कभी छोटी, कभी बड़ी भी,
हर दिन एक बड़ी, एक ओर बड़ी मछली की चाह
एच्छाओं के पैर नहीं
पंख होते हैं।
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