रविवार, 10 अक्तूबर 2010

आग


आग जिंदगी देती है
जिंदगी को ऊष्मा देती है
ऊष्मा को उसकी पराकाष्ठा बताती है
और जिंदगी को उसकी नियति देती है,
आग जिंदगी को उसकी नियति देती है,
आग जिंदगी देती है
खाने से लेकर
जिंदगी के बर्फीले क्षणों के गुजारने तक में 
अपनी भूमिका निभाती है,
आग जब बाहर होती है आदमी से 
तो रोशनी देती है
आग जब भीतर होती है आदमी के
तो सड़े गले तन्तुओं को भस्म कर
एक नई संरचना खड़ी करती है
आग धरती से उठकर 
पानी में लगती है
पानी से निकल कर
मन में लगती है
और तब यह दुनियाँ
हिलती है, डोलती है
और धराशयी होती है।

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