गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

आविष्कार


सूरज को झेल सकने में असमर्थ आँखों ने

नियॉन बतियों में जीना सीख लिया।

हवा के थपेड़ों से घबराई पाँखों ने

कोटरों में सिर छिपाना सीख लिया।

एक के बाद दूसरे आविष्कारों के साथ

फैलते बुद्धि के प्रकल्प के आगे संसार सिमट गया है,

सितारे जुगनू बन गए हैं

चाँद रेत के टीले सा लगने लगा है।

प्रकृति का हर रहस्य आविष्कृत

हो गया है।

आविष्कृत होने को शेष

रह गया है मन।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें